एक शायरी लिखी है कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा।
तेरी सीरत साफ़ सीसे की तरह है मेरे दामन में दाग हज़ारों है
तू नायब किसी पत्थर की तरह मेरा उठना बैठना बाजारों में है
तेरी मौजुदगी का एहतराम कर भी लूँ
जब तू होगा रुबरु मैं अपना जज्बात कहाँ छुपाऊंगा
एक शायरी लिखी है कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा
एक उम्र लेकर आना
मैं खाली किताबें लेकर आऊंगा
तोड़कर लाने के वादे नहीं
मैं अपनी कलम से सितारें सजाऊंगा
इस जमी पे खास नहीं है कोई मेरा
अगर तू एक बार कुबूल करे
मैं अपने गवाहों को आसमान से बुलाऊंगा
एक शायरी लिखी है कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा।
कई रात गुजारी है इस अँधेरे में
तूम थोड़ा सा नूर ले आओगे
मेरे तकिये गीले है आसुंओ से
क्या तुम अपनी गोद में सुलाओगे
सुना है बाग़ है तुम्हारे आगन में
मेरे लाहसल बचपन को वो झूला दिखाओगे
मैंने खोया है अपनी हर प्यारी चीज को
मैं अपनी किस्मत फिर आजमाऊँगा
एक शायरी लिखी है कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा।